● 12 ग़ज़ल : मत वही गुजरे ज़माने
मत वही गुज़रे ज़माने याद कर रोया करो ।।
दौर जो चालू है उसके साथ में दौड़ा करो ।।
अपने सीधे सादेपन को इक तरफ फेंको कहीं ,
होशियारी चालबाज़ी के हुनर सीखा करो ।।
सच के कहने से अगर पड़ते हों लाले जान के ,
फिर तो बख़ुदा बेतअम्मुल झूठ ही बोला करो ।।
दिल को दहला पिघला दें ऐसे न मंज़र देखिए ,
आँख को दिलकश नज़ारों पे ही अब रोका करो ।।
दुश्मनों से खेल ख़ूँ का खुलके ज्यों खेलो हो तुम ,
पीठ में यारों की चाकू भी यूँ ही घोंपा करो ।।
इस ज़माने में बनावट और दिखावा ख़ास है ,
काटना चाहे न लेकिन ज़ोर से भौंका करो ।।
रँग रहे तेज़ी से शहरी रंग में अब गाँव भी ,
तुम भी धोती छोड़ दो फ़ुलपेंंट ही पहना करो ।।
लीक पर तो सब ही चलते हैं अगर तुम हो अलग ,
तो गुलों की फ़स्ल रेगिस्तान में पैदा करो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
Bahut sunder likha hai
धन्यवाद ।