■ मुक्तक : 16 -मेरे अँधेरों को Posted on February 1, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मेरे अँधेरों को भी इक आफ़्ताब देना ।। जो ज़िंदगी बदल दे , ऐसी किताब देना ।। हरगिज़ तलब न शर्बत-ओ-शराब की है मुझको , बस तिश्नगी को मेरी मक्के का आब देना ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,145