24. ग़ज़ल : शाह लगते फ़क़ीर
शाह लगते फ़क़ीर होते है ।।
कुछ ही दिल से अमीर होते हैं ।।
अपने साधे से कब निशानेंं लगें ,
उनके तुक्के भी तीर होते हैं ।।
लाखों कवि हैं जहाँ में पर कितने ,
सूर , तुलसी , कबीर होते हैं ?
सच ग़ज़लगोई करने वालों में ,
अब न ग़ालिब , न मीर होते हैं ।।
जिस्म से अनगिनत हैं ताक़तवर ,
सच में गिनती के वीर होते हैं ।।
पीर हर क़िस्म की मिटा दें जो ,
बस वही सच के पीर होते हैं ।।
जान जाए मगर न पाप करें ,
जिनके रोशन ज़मीर होते हैं ।।
असली शतरंज में कहाँ प्यादे ,
दर हक़ीक़त वज़ीर होते हैं ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति