31. ग़ज़ल : जो पाले नेवले
जो पाले नेवले उसको , न लाके साँप दो भाई ।।
हो जिसके हाथ में पत्थर , उसे मत काँच दो भाई ।।
न ऐसे नाक भौं अपनी , सिकोड़ो आँख मत मींचो,
जो दिखता हो कोई नंगा , उसे बस ढाँप दो भाई ।।
जिन्हें नज़्ला-ओ-सर्दी है , मुफ़ीद उनको ही ये होगी,
सुलगते हैं जो गर्मी में , उन्हें मत आँच दो भाई ।।
अगर करना हो सदक़ा तो वसीअत में दमे आख़िर ,
किसी को अपने गुर्दे और किसी को आँख दो भाई ।।
जला है दूध से इतना , कि अब तो एहतियातन वो,
न पीता फूँके बिन चाहे , बरफ़ सा छाँछ दो भाई ।।
जो करते हैं ज़बरदस्ती , हैं दहशतगर्द-दंगाई ,
कलम कर उनके सर खम्भों के ऊपर टाँग दो भाई ।।
न शाए‘ हो सका जो वो , मेरा इस आख़िरी दम में,
क़ुरासा मत पढ़ो ; दीवान लाकर बाँच दो भाई ।।
[शाए‘=प्रकाशित ;क़ुरासा=पवित्र ग्रन्थ/कुरान ;दीवान=ग़ज़ल संग्रह ]
-डॉ. हीरालाल प्रजापति