■ मुक्तक : 22 – नर्म डंठल Posted on February 6, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments नर्म डंठल की जगह सख़्त तना हो जाना ।। बिखरे-बिखरे से चाहता था घना हो जाना ।। कोशिशों में तो न कुछ क़स्र उठा रक्खी थी , पर था क़िस्मत में हर इक हाँ का मना हो जाना ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,578