36. ग़ज़ल : क्या मिलेगा
क्या मिलेगा रात-दिन सब छोड़कर पढ़के यहाँ ।।
माँजते बर्तन जहाँ एम. ए. किये लड़के यहाँ ।।1।।
जेब हैं फुलपेंट में उनके कई किस काम के ,
जब टटोलोगे तो पाओगे वही कड़के यहाँ ।।2।।
ढूँढती फिरती हैं नज़रें इक अदद वैकेन्सी ,
उनका दिल तक कर हसीनाओं को ना धड़के यहाँ ।।3।।
कुछ तो छूने के लिए बेताब हैं ऊँचाइयाँ ,
अपने गड्ढों से निकलने लाशों पे चढ़के यहाँ ।।4।।
कुछ क़ुुुसूूर उनका नहीं जो दिन चढ़े तक सोयें वो ,
रात भर जगते हैं तो कैसे उठें तड़के यहाँ ।।5।।
उनका सपना है कि गलियाँ गाँव की समतल रहें ,
जबकि गड्ढों से अटी हैं शहरों की सड़कें यहाँ ।।6।।
पहले थर्राते थे दरवाज़ो शजर तूफाँ से सच ,
खिड़कियाँ क्या अब तो पत्ता तक नहीं खड़के यहाँ ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति