37. ग़ज़ल : लस्त पस्तों की
लस्त-पस्तों की कसक को जक मिले II
हम से जल-भुन कर लपक ठण्डक मिले II
सब ख़ुशामदियों के जैसे सामने ,
पीठ पीछे सब चहक निंदक मिले II
बदनसीबी थी हमारी और क्या ,
हंस की मेहनत के बदले वक मिले II
भीख में या इत्तिफ़ाक़न औ’ न ख़ुद ,
लड़-झगड़ कर हमको ये चक हक़ मिले II
दिख गई भूले अगर इंसानियत ,
मज़्हबी बेशक़ कलक भौचक मिले II
–डॉ. हीरालाल प्रजापति