■ मुक्तक : 42 – शबनम चाट के Posted on February 11, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ओस ही चाट मैंं जैसे-तैसे प्यास बुझाता हूँ ॥ पास न ईंधन धूप में रोटी-दाल पकाता हूँ ॥ ऊँट के मुँँह में जीरे जितनी अल्प कमाई में , यत्न में जीवित भर रहने के मर-मर जाता हूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,575