43 : ग़ज़ल – पूनम का चाँद
पूनम का चाँद तेरा चेहरा है हू-ब-हू ।।
फैलाए रौशनी जहँ-तहँ तेज़ सू-ब-सू ।।
होश अपना खोके तुझको रह जाए देखता ,
ऐ ख़ूबरू तू जिसके हो जाए रू-ब-रू ।।
दिखने में तो हो प्यारे मासूम औ‘ हसीं ,
चेहरे से दिल की लगती है पर ख़बर कभू ?
हर वक़्त तुझसे बातों की हो उसे तलब ,
हँसके तू जिससे कर ले इक बार गुफ़्तगू ।।
जो ख़ुदकुशी की ख़ातिर फंदे लिए खड़े,
उनमें जगादे फिर तू जीने की आर्ज़ू ।।
गुजरे जिधर-जिधर से तू तो उधर-उधर,
बिखरे गुलाब , संदल औ‘ मोगरे की बू ।।
लेकर चराग़ ढूँढा दुनिया में सब जगह ,
आशिक़ मिले तेरे सब इक भी नहीं अदू ।।
रह में तेरी बिछे हैं दिल , जाँ क़दम-क़दम,
पाया न भीख में भी इक हमने ही कभू ।।
(अदू = शत्रु )
–डॉ. हीरालाल प्रजापति