55 : ग़ज़ल – हाँ ! मुझसे बेपनाह मोहब्बत
हाँँ ! मुझसे बेपनाह मोहब्बत न करो तुम ।।
लेकिन ख़ुदा के वास्ते नफ़्रत न करो तुम ।।1।।
यों दुश्मनी निभाओ लड़ो , काट दो गर्दन ,
बस दिल को मेरे बारहा आहत न करो तुम ।।2।।
ख़िदमत में मेरी जान भी हाज़िर है , कभी भी
ईमान और दीन की चाहत न करो तुम ।।3।।
सच ख़ूब क़हर ढाओ कि ख़ुद्दार हूँ मुझ पर ,
एहसान की तो भूल के जुरअत न करो तुम ।।4।।
बस इतनी मेहरबानी करो मुझपे क़सम से ,
इतनी सी भी मेरे लिए ज़हमत न करो तुम ।।5।।
हूँ रीछ ज़ात मेरे घने बाल हैं लेकिन ,
भेड़ों के बदले मेरी हज़ामत न करो तुम ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति