■ मुक्तक : 71 – पानी चखूँ भी क्यों Posted on February 24, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments पानी चखूँ भी क्यों हो गर शराब सामने ? ताकूँ कनेर क्यों हो जब गुलाब सामने ? फाँकूँ चने ही क्यों अचार चाटता फिरूँ , रक्खे हों तश्तरी में जब कबाब सामने ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 6,051