■ मुक्तक : 85 – कर-कर कंघी Posted on March 6, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments कर-कर कंघी ज़ुल्फों वाला गंजा हो बैठा ॥ तक-तक चमचम आँखों वाला अंधा हो बैठा ॥ सूरज बनने की चाहत में ख़ुद को आग लगा , बेचारा जुगनू बर्फ़ानी ठंडा हो बैठा ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,267