■ मुक्तक : 87 – मेरे सूरज का Posted on March 7, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मेरे सूरज का सारा चाँदना तो तम से ढक डाला ।। मेरी इस्मत का जब्रन फाड़ जो कोरा वरक़ डाला ।। भला अब देव को अपने मैं बोलो क्या करूँ अर्पित ? चढ़ाने से ही पहले तुमने उसका भोग चख डाला ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,136