62 : ग़ज़ल – उन्हे प्यार मैं
उन्हें प्यार मैं जब से करने लगा हूँ ।।
यक़ीनन ही कुछ-कुछ बदलने लगा हूँ ।।1।।
धुआँ कर रहा था मैं तनहाइयों में ,
सरे बज़्म आकर धधकने लगा हूँ ।।2।।
बहुत डर के चलता था हालात से मैं ,
अब इन शेर-चीतों से लड़ने लगा हूँ ।।3।।
मेरी कट गईं जब से दोनों ही टाँगें ,
मैं अब और भी तेज़ चलने लगा हूँ ।।4।।
नहीं मिल रही जब दवा ही कहीं से ,
दवा दर्द को ही समझने लगा हूँ ।।5।।
बहुत शुक्रिया उनकी फ़र्माइशों का ,
निठल्ला कमाने निकलने लगा हूँ ।।6।।
न थे ग़म तो मैं शे’र कह पाता कैसे ,
पर अब शे‘र पर शे’र कहने लगा हूँ ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति