■ मुक्तक : 89 – वक़्ते रुख़्सत Posted on March 8, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments वक़्ते रुख़्सत ये ख़याल उठ रहा तहे दिल से ।। जैसे पाकर भी अभी भी हूँ दूर मंज़िल से ।। जब न लुत्फ़ आया न पायी ख़ुशी न कुछ राहत , सोचता हूँ कि मिला क्या तमाम हासिल से ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 6,151