■ मुक्तक : 92 – फर्ज़ का निर्वाह Posted on March 9, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments फ़र्ज़ का निर्वाह ही कर धर रहे हैं ।। हक़ कहाँ अपना तलब हम कर रहे हैं ? ‘है यही इक राहे आख़िर’ इस यक़ीं पर , आज तक जीने की ख़ातिर मर रहे हैं ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,906