■ मुक्तक : 93 – सारे ही जग से झगड़ूँ Posted on March 9, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments सारे ही जग से झगड़ूँ कब उससे लड़ता हूँ ? फिर भी उसकी आँखों में चुभता हूँ , गड़ता हूँ ।। उसके पथ में फूलों सा मैंं रहता बिछ-बिछ कर , पर उसको लगता कंटक-रोड़ोंं सा अड़ता हूँ !! -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,558