■ मुक्तक : 102 – जो तेरा हुस्ने सरापा Posted on March 11, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments जो तेरा हुस्ने सरापा न आँखें खींच सका ।। शर्बते इश्क़ न उस ख़ुश्कदिल को सींच सका ।। तो ख़ता इसमें तेरी क्या जो वो तुझे न कभी , सख़्त तनहाई-ओ-ख़ल्वत में भी न भींच सका ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,234