■ मुक्तक : 106 – शराबें पी Posted on March 12, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments शराबें पी भटकता , ज़ह्र ख़ुश हो चाटता होता ।। पटक सर अपना दीवारों पे ख़ुद को मारता होता ।। चले जाने के तेरे बाद हँसता ही नहीं रहता , अगर तुझको हक़ीक़त में वो बंदा चाहता होता ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,232