■ मुक्तक : 109 – डर है कि Posted on March 12, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) डर है कि टूट जाये मेरी खोपड़ी न आज ।। किसने चलाया ये अजीब अटपटा रिवाज़ ? फ़ौरन ही ऐसे बेतुके सभी चलन हों बंद , उनको निभाइये कि जिनपे आपको हो नाज़ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,231