■ मुक्तक : 114 – सब कुछ ठोस Posted on March 14, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments सब कुछ ठोस कठोर ही न हो कुछ निश्चित तारल्य भी हो ।। जीवन में कठिनाई रहे पर थोड़ा तो सारल्य भी हो ।। मैं कब केवल अभिलाषी हूँ अमृत घट का हे ईश्वर , प्रत्युत उसमें औषधि जितना स्वयं कहूँ गारल्य भी हो ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,266