■ मुक्तक : 130 – गिरा नज़रों से भी Posted on March 25, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments गिरा नज़रों से भी हूँ और दिल का भी निकाला हूँ ।। यक़ीनन हूँ बुझा सूरज पिघलता बर्फ़ काला हूँ ।। समझते हैं जो ऐसा आज वो कल जान जाएँगे , मैं तह का मैकदा हूँ या हिमालय का शिवाला हूँ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,461