■ मुक्तक :136 – हैरत अंगेज़ Posted on April 4, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से अवतरित ) हैरत अंगेज़ ज़बरदस्त खुलासा होते ।। हमने देखा है ग़ज़ब रोज़ तमाशा होते ।। तिल को देखा है वहाँ ताड़ सा बनते अक़्सर , और पर्वत को सिकुड़ राई-रवा सा होते ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,349