■ मुक्तक : 140 – मरुथल समस्त Posted on April 7, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मरुथल समस्त बूँद-बूँद को तरस रहे ।। सब मेघ जा उधर समुद्र पर बरस रहे ।। ये देख दानवीर कंघे गंजों के लिए , अंधों को चश्मे बाँटने कमर को कस रहे ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,757