■ मुक्तक : 147 – जबकि जी भर के Posted on April 10, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments जबकि जी भर के सताया है रुलाया है मुझे ॥ फ़िर भी लगता है मोहब्बत ने बनाया है मुझे ॥ उसको पाने ही सिफ़र से मैं हज़ारों था हुआ , उसके ना मिलने ने मिट्टी में मिलाया है मुझे ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,250