■ मुक्तक : 155 – नर्म डंठल Posted on April 13, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments नर्म डंठल की जगह सख़्त तना हो जाना ।। चाह थी बिखरे से थोड़ा सा घना हो जाना ।। कोशिशों में तो कसर कुछ न उठा रक्खी थी , पर था क़िस्मत में हर इक हाँ का मना हो जाना ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,238