■ मुक्तक : 161 – एहसास मेरे मर हैं चुके Posted on April 15, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments एहसास मेरे मर हैं चुके अब तो इस क़दर ॥ बर्फ़ीली हवाओं का न अब लू का हो असर ॥ लगता न कहीं पर भी बिना उसके दिल मेरा , जंगल हो मरुस्थल हो कि फिर हो कोई शहर ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,338