■ मुक्तक : 167 – रात-रात भर Posted on April 17, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments रात-रात भर जाग जाग कर यों न भोर तू कर ॥ निर्निमेष मत अपनी दृष्टि आकाश ओर तू कर ॥ प्रीति सत्य और अति पुनीत है शंकहीन तेरी , पर निरर्थ श्रम चंद्र प्राप्ति का मत चकोर तू कर ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,433