■ मुक्तक : 168 – मैंने तेरी नाचती Posted on April 17, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मैंने तेरी नाचती तस्वीर देखी है ॥ दिल में सर ऊँचा उठाती पीर देखी है ॥ वन में जैसे क़ैस ने देखा हो लैला को , राँझना ने मानो मरु में हीर देखी है ॥ ( क़ैस=मजनूँ , मरु=रेगिस्तान ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,423