87 : ग़ज़ल – किस रंग में ये तूने
किस रंग में ये तूने , रब हमको रँग है डाला ?
कौए तलक चिढ़ाएँ , कह-कह के काला-काला !!1।।
हाँ ! कारसाज़ तुझको , पाकर न हमने सोचा ,
क्या फ़ायदे की मस्जिद , किस काम का शिवाला ?2।।
हमको यूँ ही न समझो , बेकार में शराबी ,
ग़म या ख़ुशी न हो तो , छूते नहीं पियाला ।।3।।
जलती है आग दोनों , के पेट में बराबर ,
इस मुँह से छीनकर उस , मुँह में न दो निवाला ।।4।।
तमगों को रखके कोई , देता नहीं उधारी ,
अबके तो हमको देना , इन्आम नक़्द वाला ।।5।।
दरवेश कब से दर पे , दरवेश के खड़ा है ,
कासा बजाता गाता , इक गीत दर्द वाला ।।6।।
यूँ उसने अपने दिल से , हमको किया है ख़ारिज ,
जैसे कि कोई काँटा , आँखों का है निकाला ।।7।।
इनके भी है मुआफ़िक़ , उनके भी है मुताबिक़ ,
इक हम हैं इश्क़ जिसको , आए न रास साला ।।8।।
चेहरा न ढाँपना तुम , कुछ ढूँढ मैं रहा हूँ ,
इस बोगदे में चिनगी , भर भी नहीं उजाला ।।9।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति