भले खूँख़्वार हो , शैताँँ हो लेकिन इक वली समझे ।।
कभी समझे ख़ुदा उसको , तो रब उसको कभी समझे ।।
वही है दोस्त सच्चा जो ग़लतबीं होके भी अपना ,
ग़लत हो दोस्त कितना भी उसे बेशक़ सही समझे।।
( ग़लतबीं = जो दूसरों में केवल दोष देखता है )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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