■ मुक्तक : 184 – ख़स्ताहाल Posted on April 28, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments अपने ख़स्ता हाल पे औरों , के धन से चिढ़ हो ।। देख बहुत अपना बूढ़ापन , यौवन से चिढ़ हो ।। और यही मन और भी दुःख देता है जब अपना , रोग असाध्य हो तो स्वस्थों के , जीवन से चिढ़ हो ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,465