■ मुक्तक : 197 – गिरते पाताल Posted on May 6, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments गिरते पाताल उठा नील गगन हो जाते ।। घोर तम भोर के सूरज की किरन हो जाते ।। भूखे चीते जो लगे होते मनुज के पीछे , वृद्ध कच्छप युवा द्रुत गामी हिरन हो जाते ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,249