■ मुक्तक : 198 – बाल ना नोचता Posted on May 8, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments बाल ना नोचता न सर को धुना करता था ॥ मेरी बकवास भी वो दिल से सुना करता था ॥ जब न मिलती थी तवज्जोह कहीं से मुझको , इक वही था जो मुझेआके गुना करता था ॥ (गुनना = मानना, महत्व देना) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,251