■ मुक्तक : 201 – कभी दिल में Posted on May 9, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments कभी दिल में हमें उनके ठिकाना रोज़ मिलता था ॥ जगह तकियों की बाहों का सिरहाना रोज़ मिलता था ॥ इधर कुछ रोज़ से क्या हाथ अपना तंग हो बैठा , नहीं मिलता कभी अब वो जो जानाँ रोज़ मिलता था ॥ ( जानाँ = महबूब , प्रेमपात्र ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,379