■ मुक्तक : 203 – हँस हँसके Posted on May 10, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) हँस-हँसके उसने कितनी बार आँख चार की ? चाबी मगर न भूलकर दी दिल के द्वार की !! माँगा कुछ उसने तोहफे में था न हमने ख़ुद , अपनी ये ज़िंदगानी उसके नाम यार की ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,258