■ मुक्तक : 212 – घर बैठे Posted on May 14, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) घर बैठे मुफ़्त की मैं रोटी नहीं चबाती ॥ भर पाऊँ पेट अपना इतना तो हूँ कमाती ॥ हूँ ग्रेजुएट फिर भी संकोच तब न करती , रिक्शा चला-चला जब मैं घर को हूँ चलाती ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,266