■ मुक्तक : 220 – क़ुराने पाक़ Posted on May 18, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) क़ुराने पाक ओ-गीता की क़सम खाकर मैं कहता हूँ ॥ जहाँ तक मुझसे बन पड़ता है मैं चुपचाप रहता हूँ ॥ मगर इक हद मुक़र्रर है मेरे भी सब्र की जायज़ , न औरों पर सितम ढाऊँ न ख़ुद पर ज़ुल्म सहता हूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,237