■ मुक्तक : 221 – पहले ज़माने Posted on May 18, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments पहले ज़माने में तो रे घर-घर थे कबूतर ॥ इंसानी डाकिये से भी बेहतर थे कबूतर ॥ इस दौर में वो ख़त-ओ-किताबत नहीं रही , सब आशिक़ों पे ज़ाती नामावर थे कबूतर ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,258