■ मुक्तक : 242 – खूब उथले हैंं Posted on June 4, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments खूब उथले हैं खूब गहरों के ॥ दिल हैं काले सभी सुनहरों के ॥ नाक है सूँड जैसी नकटों की , कान हाथी से याँ पे बहरों के ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,344