■ मुक्तक : 243 – जिसे मिलना न था Posted on June 4, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments जिसे मिलना न था इक बार बारंबार पाता है ॥ जो फूटी आँख ना भाए मेरा दीदार पाता है ॥ करिश्मा उसकी क़िस्मत का मेरी तक़्दीर का धोखा , वो मेरा क़ाबिले नफ़रत मुझी से प्यार पाता है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,458