95 : ग़ज़ल – हमको परखना ही हो
हमको परखना ही हो तो हँसकर के देखना ।।
पक्की कसौटियों पे न कसकर के देखना ।।1।।
आए हैं शब-ओ-रोज़ ही हम ज़ह्र फाँकते ,
आए न एतबार तो डसकर के देखना ।।2।।
ना तू ही जिन्न और न अलादीन मैं कोई ,
नाहक है फिर चिराग़ को घसकर के देखना ।।3।।
सूरज की रोशनी में तो चंदा भी है बुझा ,
जुगनूँ की चौंध दिन में तमस कर के देखना ।।4।।
रहते हैं चुप पर आता है हमको भी बोलना ,
चाहो मुबाहसा-ओ-बहस कर के देखना ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति