■ मुक्तक : 251 – क्यों दूर की बुलंदी Posted on June 10, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments क्यों दूर की बुलंदी दिखे खाई पास से ॥ क्यों क़हक़हों से बाँस सुबकते हैं घास से ॥ क्या यक-ब-यक हुआ कि तलबगार लुत्फ़ के , पाकर ख़ुशी भी दिखते बड़े ही उदास से ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,442