■ मुक्तक : 288 – जहाँ पर हार Posted on July 27, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments जहाँ पर हार मिलने पर भी ताज़ा हार मिलता है ॥ हिक़ारत की जगह सच्चा दिलासा प्यार मिलता है ॥ यक़ीनन वो जगह जन्नत नहीं तो और क्या होगी , जहाँ ज़ख़्मी दिलों को मरहम ओ तीमार मिलता है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,510