■ मुक्तक : 298 – एक माँँगो तो Posted on August 4, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments एक माँगो तो सिर्फ़ एक कहाँ देते थे ? आधी गागर के बदले पूरा कुआँ देते थे !! अब ज़माने में वो न दोस्त रहे पहले से , हँसते-हँसते जो अपने दोस्त को जाँ देते थे ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,250