■ मुक्तक : 299 – न ग़म होता तो Posted on August 5, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments न ग़म होता तो क़ीमत कुछ नहीं होती मसर्रत की ॥ अगर होती न नफ़्रत क्या वक़्अत होती मोहब्बत की ? मयस्सर होता सब सामाँ जो आसानी से ख़्वाबों का , ज़रूरत फिर तो रब की भी न रह जाती इबादत की ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,748