■ मुक्तक : 304 – सुई के रूप मेंं Posted on August 11, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments सुई के रूप में घातक कटार-खंज़र था ॥ वो केंचुआ नहीं कोई विशाल अजगर था ॥ तहों में अपनी डुबोकर वो रखता था सब कुछ , वो खड्ड ; खड्ड नहीं था महासमंदर था ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,041