■ मुक्तक : 310 – मेरे जितने हमसफ़र थे Posted on August 16, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मेरे जितने हमसफ़र थे तैशुदा मंज़िल पे हैं ।। मैं तलातुम में हूँ बाक़ी ख़ुशनुमा साहिल पे हैं ।। मैं भी उन सा ही था मेहनतकश व ताक़तवर मगर , मैं ही क्यों बस गर्त में जब सब महे क़ामिल पे हैं ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,401