■ मुक्तक : 317 – ज़िम्मेदारी Posted on August 21, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुँह अपना सच से और हक़ीक़त से मोड़कर ॥ हर फ़र्ज़-ओ-ज़िम्मेदारी से रिश्ते ही तोड़कर ॥ सालों से लाज़मी थी तवील एक नींद तो – बस पीके ज़ह्र सो गए सब फ़िक्र छोडकर ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,141