102 : ग़ज़ल – ऐसा नहीं कि हमको
ऐसा नहीं कि हमको आता नहीं लगाना ।।
पर चूक-चूक जाए है आज ही निशाना ।।1।।
नादाँँ अगर न होते तो बद को बद न कहते ,
अब किस तरह मनाएँ नाराज़ है ज़माना ?2।।
जब तक न की थी हमने ‘हाँ ‘वो मना रहे थे ,
तैयार देख हमको करने लगे बहाना ।।3।।
इतनी दफ़्आ हम उनसे सच जैसा झूठ बोले ,
अंजाम आज का सब सच उसने झूठ माना ।।4।
इक बार आज़माइश हमने न की है उनकी ,
जब जब भी उनको परखा पाया वही पुराना ।।5।।
महफ़िल में अपनी-अपनी कहने में सब लगे हैं ,
सुनने न कोई खाली कहने से क्या फ़साना ?6।।
इस फ़िक्र में कि अपना क्या होगा ज़िंदगी में ,
हम भूल ही चुके हैं क्या हँसना क्या हँसाना ?7।।
कहता है हिज्र में ही रहता है प्यार ज़िंदा ,
महबूब मुझसे शादी को इसलिए न माना ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति